केसर और ईसका उपयोग
केसर का पौधा सुगंध देनेवाला
बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से
25 सेमी
(आधा गज) ऊंचा, परंतु
कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे,
पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके
बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता
है, जिस
पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से
इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह
में बोए जाते हैं, जो
दो-तीन महीने बाद अर्थात नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं।
इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को
केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं।
इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार
के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा
भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक
फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए
केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता है। केसर की सिर्फ 450 ग्राम मात्रा बनाने के
लिए क़रीब 75
हज़ार फूल लगते हैं और 150000 फूलों से लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त
होता है। केसर के फूलों से
निकाला जानेवाला सोने जैसा कीमती केसरकी कीमत बाज़ार में तीन से
साढ़े तीन लाख रुपये किलो है। इन
फूलों में पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते
हैं। कुक्षिवृंत (style)
नारंग रक्तवर्ण के,
अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनके ऊपर तीन
कुक्षियाँ, लगभग
एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के
भूरे रंग की होती हैं, जिनके
किनारे दंतुर या लोमश होते हैं।
§ 'केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार
स्थान में बिछा देते हैं। सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते
हैं। रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि
श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं।
असली केसर की पहचान
§ असली
केसर पानी में पूरी तरह घुल जाती है। केसर को पानी में भिगोकर कपड़े पर रगडने से
यदि पीला केसरिया रंग निकले तो उसे असली केसर समझना चाहिए और यदि पहले लाल रंग
निकले व बाद में पीला पड़े तो नकली केसर समझना चाहिए।
आयुर्वेदिक उपयोग
§ केसर
का उपयोग आयुर्वेदिक नुस्खों में, खाद्य
व्यंजनों में और देव पूजा आदि में तो केसर का उपयोग होता ही था पर अब पान मसालों
और गुटकों में भी इसका उपयोग होने लगा है। केसर बहुत ही उपयोगी गुणों से युक्त
होती है। यह कफ नाशक, मन
को प्रसन्न करने वाली, मस्तिष्क
को बल देने वाली, हृदय और
रक्त के लिए हितकारी, तथा
खाद्य पदार्थ और पेय (जैसे दूध) को
रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।
§ चिकित्सा
में यह उष्णवीर्य, आर्तवजनक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक
माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी
जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है। यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति बनाए रखने वाली, कामोत्तेजक, त्रिदोष नाशक, आक्षेपहर, वातशूल शामक, दीपक, पाचक, रुचिकर, मासिक धर्म साफ़ लाने वाली, गर्भाशय व योनि संकोचन, त्वचा का रंग उज्ज्वल करने वाली, रक्तशोधक, धातु पौष्टिक, प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक
करने वाली, कफ
नाशक, मन
को प्रसन्न करने वाली, वातनाड़ियों
के लिए शामक, बल्य, वृष्य, मूत्रल, स्तन (दूध) वर्द्धक, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी, तथा खाद्य पदार्थ और पेय (जैसे
दूध) को रंगीन और सुगन्धित करने वाली होती है।
§ आयुर्वेदों
के अनुसार केसर उत्तेजक होती है और कामशक्ति को बढ़ाती है। यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों
में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।
§ केसर
बुखार की प्रारिम्भक अवस्था, दाने, चेचक, चिकन
पोक्स व आन्त्रज्वर को बाहर निकालता है लेकिन दाने निकल आने पर विशेषत: बुखार आदि
पित्त के लक्षणों में केसर का उपयोग सावधानी से करना चाहिए।
§ इसका
उपयोग यूनानी और आयुर्वेदिक दवाईयों में इसका बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है।
महिलाओं के कष्टार्तव को दूर करने के लिए,
2-2 रत्ती केसर दूध में घोलकर दिन में तीन बार देना गुणकारी
होता है।
§ केसर
की पेसरी गर्भाशय की तकलीफ दूर करने में भी प्रयुक्त की जाती है। ल्यूकोरिया एवं
हिस्टीरिया की स्थिति में ग्रहण करने से पीड़ित महिला को फ़ायदा पहुंचता है।
§ किसी
भी नवजात शिशु के जन्म से पूर्व उसकी माता को अनिवार्य रूप से प्रतिदिन दूध में
केसर घोलकर पीने को दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि केसर का दूध पीने से शिशु का
रंग गोरा होता है परंतु इसके कई आयुर्वेदिक गुणों की वजह से यह परंपरा प्राचीन काल
से ही चली आ रही है। गर्भवती स्त्री और उसके बच्चे को इन सभी बीमारियों के प्रभाव
से बचाने के लिए उन्हें केसर का सेवन कराया जाता है। साथ ही केसर सामान्य महिलाओं
के लिए भी बहुपयोगी है। इससे स्त्रियों में होने वाली अनियमित मासिक स्राव एवं इस
दौरान होने वाले दर्द में लाभ मिलता है। यदि किसी स्त्री के गर्भाशय की सूजन है तो
उसके लिए केसर का सेवन फ़ायदेमंद रहता है।
§ उदर
संबंधित अनेक परेशानियों, जैसे
अपच, पेट
में दर्द, वायु
विकार आदि में केसर उपयोगी है।
§ चोट
लगने पर या त्वचा के झुलस जाने पर केसर का लेप लगाने से आराम मिलता है।
§ त्वचा
रोग होने पर खरोंच और जख्मों पर केसर लगाने से जख्म जल्दी भरते हैं।
§ चन्दन
को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से,
सिर, नेत्र और
मस्तिष्क को शीतलता, शान्ति
और ऊर्जा मिलती है, नाक से रक्त गिरना
बन्द हो जाता है और सिर दर्द दूर होता है।
§ अगर
सर्दी लग गई हो तो रात्रि में एक गिलास दूध में एक चुटकी केसर और एक चम्मच शहद
डालकर यदि मरीज़ को पिलाया जाये तो उसे अच्छी नींद आती है।
§ केसर
बच्चों के शीत रोगों की रामबाण औषधि है। बच्चों को सर्दी, जुकाम, बुखार होने पर केसर की एक
पँखुड़ी पानी में घोंटकर इसका लेप छाती पीठ और गले पर करने से आराम होता है।
§ शिशु
को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पँखुड़ी
2-4 बूँद
दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें, ताकि
केसर दूध में घुल-मिल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ।
§ बाल्यकाल
में शिशुओं को अगर सर्दी जकड़ ले और नाक बंद हो जाये तो मां के दूध में केसर
मिलाकर उसके माथे और नाक पर मला जाये तो सर्दी का प्रकोप कम होता है और उसे आराम
मिलता है।
§ माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए
केसर जायफल व लौंग का लेप (पानी में) बनाएँ और रात को सोते समय लेप करें।
§ गंजे
लोगों के लिये तो यह संजीवनी बूटी की तरह कारगर है। जिनके बाल बीच से उड़ जाते हैं, उन्हें थोड़ी सी मुलहठी को दूध
में पीस लेना चाहिए। तत्पश्चात् उसमें चुटकी भर केसर डाल कर उसका पेस्ट बनाकर सोते
समय सिर में लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है।
§ रूसी
की समस्या हो या फिर बाल झाड़ रहे हों,
ऐसी स्थिति में भी उपरोक्त फार्मूला अपनाना चाहिए।
§ यह
सभी 'केसर' के घरेलू उपचार एवं उपयोग हैं, लेकिन किसी वैद्य के परामर्श
द्वारा इसका विशेष लाभ उठाया जा सकता है। इतने सारे मानवोपयोगी गुणों को संजोए 'केसर' सच
में एक अनमोल वनस्पति एवं अद्भुत औषधि है।
सावधानी
§ चूंकि यह उष्णतावर्धक है, अत: कम से कम सेवन करना चाहिये।
गर्भवती महिलाएं अधिक मात्रा में केसर का सेवन न करे, अन्यथा गर्भपात हो जाने की
आशंका रहती है।
§